Friday 26 April 2013






काश गीर के कुछ शेरो को एमपी भेजने के पहले सुप्रीमकोर्ट ने ये सोचा होता की तीन सौ सालो से गीर से शेर और मालधारी समाज के लोग एक साथ रहते है ..और दोनों ने एक दुसरे के अस्तिव को स्वीकार कर लिया है .. गीर में आजतक किसी भी शेर ने किसी इन्सान पर हमला नही किया है और किसी भी लोकल इन्सान ने किसी शेर पर हमला नही किया है |

असल में शेर अपने आसपास के परिवेश के प्रति बहुत ही सजग रहते है .. गीर के मालधारी लोग जो कपड़ा पहनते है उसे केडीयु और चोर्णी कहते है और शेरो ने उसे अपना मान लिया है .. इसलिए यदि कोई मालधारी शेरो के पास से भी गुजरता है तो शेर उसके उपर हमला नही करते ..

लेकिन यदि ये शेर एमपी जायेंगे तो क्या ये वहाँ के परिवेश को स्वीकार कर पाएंगे ?

No comments:

Post a Comment