संसार के पहले इंजीनियर , वास्तुविद ,मिस्त्री .कारीगर - भगवान् विश्वकर्मा
प्राचीन ग्रंथो उपनिषद एवं पुराण आदि का अवलोकन करें तो पायेगें कि आदि काल से ही विश्वकर्मा शिल्पी अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न मात्र मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित और वंदित है । भगवान विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कोर्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी आदि का निर्माण इनके द्वारा किया गया है । पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोगी होनेवाले वस्तुएं भी इनके द्वारा ही बनाया गया है । कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशुल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है । ये "शिल्पशास्त्र" के आविष्कर्ता हैं। पुराणानुसार यह प्रभास वसु के पुत्र हैं। "महाभारत" में इन्हें लावण्यमयी के गर्भ से जन्मा बताया है। विश्वकर्मा रचना के पति हैं। देवताओं के विमान भी विश्वकर्मा बनाते हैं। इन्हें अमर भी कहते हैं। "रामायण" के अनुसार विश्वकर्मा ने राक्षसों के लिए लंका की सृष्टि की। सूर्य की पत्नी संज्ञा इन्हीं की पुत्री थी। सूर्य के ताप को संज्ञा सहन नहीं कर सकी, तब विश्वकर्मा ने सूर्य तेज का आठवां अंश काट उससे चक्र, वज्र आदि शस्त्र बनाकर देवताओं को प्रदान किए ! विष्णुपुराण के पहले अंश में विश्वकर्मा को देवताओं का वर्धकी या देव-बढ़ई कहा गया है तथा शिल्पावतार के रूप में सम्मान योग्य बताया गया है। यही मान्यता अनेक पुराणों में आई है, जबकि शिल्प के ग्रंथों में वह सृष्टिकर्ता भी कहे गए हैं। स्कंदपुराण में उन्हें देवायतनों का सृष्टा कहा गया है। कहा जाता है कि वह शिल्प के इतने ज्ञाता थे कि जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊ तैयार करने में समर्थ थे।
विश्व के सबसे पहले तकनीकी ग्रंथ विश्वकर्मीय ग्रंथ ही माने गए हैं। विश्वकर्मीयम ग्रंथ इनमें बहुत प्राचीन माना गया है, जिसमें न केवल वास्तुविद्या, बल्कि रथादि वाहन व रत्नों पर विमर्श है। विश्वकर्माप्रकाश, जिसे वास्तुतंत्र भी कहा गया है, विश्वकर्मा के मतों का जीवंत ग्रंथ है। इसमें मानव और देववास्तु विद्या को गणित के कई सूत्रों के साथ बताया गया है, ये सब प्रामाणिक और प्रासंगिक हैं। मेवाड़ में लिखे गए अपराजितपृच्छा में अपराजित के प्रश्नों पर विश्वकर्मा द्वारा दिए उत्तर लगभग साढ़े सात हज़ार श्लोकों में दिए गए हैं। संयोग से यह ग्रंथ 239 सूत्रों तक ही मिल पाया है।
शिल्प संकायो, कारखानो, उधोगों मॆ भगवान विश्वकर्मा की महत्ता को मानते हुए प्रत्येक वर्ग 17 सितम्बर को श्वम दिवस के रुप मे मनाता है। यह उत्पादन-वृदि ओर राष्टीय समृध्दि के लिए एक संकल्प दिवस है। प्रतिवर्ष 17 सितम्बर विशवकर्मा-पुजा के रुप मे सरकारी व गैर सरकारी ईजीनियरिग संस्थानो मे बडे ही हषौलास से सम्पन्न होता हे। लोग भ्रम वश इस पर्व को विश्वकर्मा जयंति मानते हैं जबकि विश्वकर्मा जयंती हिंदी तिथि के अनुसार माघ सुदी त्रयोदशी को होती है।
Thursday 30 May 2013
प्लास्टिक सर्जरी (Plastic Surgery) जो आज की सर्जरीry की दुनिया मे आधुनिकतम विद्या है इसका अविष्कार भारत मे हुअ है
प्लास्टिक सर्जरी (Plastic Surgery) जो आज की सर्जरीry की दुनिया मे आधुनिकतम विद्या है इसका अविष्कार भारत मे हुअ है| सर्जरी का अविष्कार तो हुआ हि है प्लास्टिक सर्जरी का अविष्कार भी यहाँ हि हुआ है| प्लास्टिक सर्जरी मे कहीं की प्रचा को काट के कहीं लगा देना और उसको इस तरह से लगा देना की पता हि न चले यह विद्या सबसे पहले दुनिया को भारत ने दी है|
1780 मे दक्षिण भारत के कर्णाटक राज्य के एक बड़े भू भाग का राजा था हयदर अली| 1780-84 के बीच मे अंग्रेजों ने हयदर अली के ऊपर कई बार हमले किये और एक हमले का जिक्र एक अंग्रेज की डायरी मे से मिला है| एक अंग्रेज का नाम था कोर्नेल कूट उसने हयदर अली पर हमला किया पर युद्ध मे अंग्रेज परास्त हो गए और हयदर अली ने कोर्नेल कूट की नाक काट दी|
कोर्नेल कूट अपनी डायरी मे लिखता है के “मैं पराजित हो गया, सैनिको ने मुझे बन्दी बना लिया, फिर मुझे हयदर अली के पास ले गए और उन्होंने मेरा नाक काट दिया|” फिर कोर्नेल कूट लिखता है के “मुझे घोडा दे दिया भागने के लिए नाक काट के हात मे दे दिया और कहा के भाग जाओ तो मैं घोड़े पे बैठ के भागा| भागते भागते मैं बेलगाँव मे आ गया, बेलगाँव मे एक वैद्य ने मुझे देखा और पूछा मेरी नाक कहाँ कट गयी? तो मैं झूट बोला के किसीने पत्थर मार दिया, तो वैद्य ने बोला के यह पत्थर मारी हुई नाक नही है यह तलवार से काटी हुई नाक है, मैं वैद्य हूँ मैं जानता हूँ| तो मैंने वैद्य से सच बोला के मेरी नाक काटी गयी है| वैद्य ने पूछा किसने काटी? मैंने बोला तुम्हारी राजा ने काटी| वैद्य ने पूछा क्यों काटी तो मैंने बोला के उनपर हमला किया इसलिए काटी|फिर वैद्य बोला के तुम यह काटी हुई नाक लेके क्या करोगे? इंग्लैंड जाओगे? तो मैंने बोला इच्छा तो नही है फिर भी जाना हि पड़ेगा|”
यह सब सुनके वो दयालु वैद्य कहता है के मैं तुम्हारी नाक जोड़ सकता हूँ, कोर्नेल कूट को पहले विस्वास नही हुआ, फिर बोला ठेक है जोड़ दो तो वैद्य बोला तुम मेरे घर चलो| फिर वैद्य ने कोर्नेल को ले गया और उसका ऑपरेशन किया और इस ऑपरेशन का तिस पन्ने मे वर्णन है| ऑपरेशन सफलता पूर्वक संपन्न हो गया नाक उसकी जुड़ गयी, वैद्य जी ने उसको एक लेप दे दिया बनाके और कहा की यह लेप ले जाओ और रोज सुबह शाम लगाते रहना| वो लेप लेके चला गया और 15-17 दिन के बाद बिलकुल नाक उसकी जुड़ गयी और वो जहाज मे बैठ कर लन्दन चला गया|
फिर तिन महीने बाद ब्रिटिश पार्लियामेन्ट मे खड़ा हो कोर्नेल कूट भाषण दे रहा है और सबसे पहला सवाल पूछता है सबसे के आपको लगता है के मेरी नाक कटी हुई है? तो सब अंग्रेज हैरान होक कहते है अरे नही नही तुम्हारी नाक तो कटी हुई बिलकुल नही दिखती| फिर वो कहानी सुना रहा है ब्रिटिश पार्लियामेन्ट मे के मैंने हयदर अली पे हमला किया था मैं उसमे हार गया उसने मेरी नाक काटी फिर भारत के एक वैद्य ने मेरी नाक जोड़ी और भारत की वैद्यों के पास इतनी बड़ी हुनर है इतना बड़ा ज्ञान है की वो काटी हुई नाक को जोड़ सकते है|
फिर उस वैद्य जी की खोंज खबर ब्रिटिश पार्लियामेन्ट मे ली गयी, फिर अंग्रेजो का एक दल आया और बेलगाँव की उस वैद्य को मिला, तो उस वैद्य ने अंग्रेजो को बताया के यह काम तो भारत के लगभग हर गाँव मे होता है; मैं एकला नहीं हूँ ऐसा करने वाले हजारो लाखों लोग है| तो अंग्रेजों को हैरानी हुई के कोन सिखाता है आपको ? तो वैद्य जी कहने लगे के हमारे इसके गुरुकुल चलते है और गुरुकुलों मे सिखाया जाता है|
फिर अंग्रेजो ने उस गुरुकुलों मे गए उहाँ उन्होंने एडमिशन लिया, विद्यार्थी के रूप मे भारती हुए और सिखा, फिर सिखने के बाद इंग्लॅण्ड मे जाके उन्होंने प्लास्टिक सर्जरी शुरू की| और जिन जिन अंग्रेजों ने भारत से प्लास्टिक सर्जरी सीखी है उनकी डायरियां हैं| एक अंग्रेज अपने डायरी मे लिखता है के ‘जब मैंने पहली बार प्लास्टिक सर्जरी सीखी, जिस गुरु से सीखी वो भारत का विशेष आदमी था और वो नाइ था जाती का| मने जाती का नाइ, जाती का चर्मकार या कोई और हमारे यहाँ ज्ञान और हुनर के बड़े पंडित थे| नाइ है, चर्मकार है इस आधार पर किसी गुरुकुल मे उनका प्रवेश वर्जित नही था, जाती के आधार पर हमारे गुरुकुलों मे प्रवेश नही हुआ है, और जाती के आधार पर हमारे यहाँ शिक्षा की भी व्यवस्था नही था| वर्ण व्यवस्था के आधार पर हमारे यहाँ सबकुछ चलता रहा| तो नाइ भी सर्जन है चर्मकार भी सर्जन है| और वो अंग्रेज लिखता है के चर्मकार जादा अच्चा सर्जन इसलिए हो सकता है की उसको चमड़ा सिलना सबसे अच्छे तरीके से आता है|
एक अंग्रेज लिख रहा है के ‘मैंने जिस गुरु से सर्जरी सीखी वो जात का नाइ था और सिखाने के बाद उन्होंने मुझसे एक ऑपरेशन करवाया और उस ऑपरेशन की वर्णन है| 1792 की बात है एक मराठा सैनिक की दोनों हात युद्ध मे कट गए है और वो उस वैद्य गुरु के पास कटे हुए हात लेके आया है जोड़ने के लिए| तो गुरु ने वो ऑपरेशन उस अंग्रेज से करवाया जो सिख रहा था, और वो ऑपरेशन उस अंग्रेज ने गुरु के साथ मिलके बहुत सफलता के साथ पूरा किया| और वो अंग्रेज जिसका नाम डॉ थॉमस क्रूसो था अपनी डायरी मे कह रहा है के “मैंने मेरे जीवन मे इतना बड़ा ज्ञान किसी गुरु से सिखा और इस गुरु ने मुझसे एक पैसा नही लिया यह मैं बिलकुल अचम्भा मानता हूँ आश्चर्य मानता हूँ|” और थॉमस क्रूसो यह सिख के गया है और फिर उसने प्लास्टिक सेर्जेरी का स्कूल खोला, और उस स्कूल मे फिर अंग्रेज सीखे है, और दुनिया मे फैलाया है| दुर्भाग्य इस बात का है के सारी दुनिया मे प्लास्टिक सेर्जेरी का उस स्कूल का तो वर्णन है लेकिन इन वैद्यो का वर्णन अभी तक नही आया विश्व ग्रन्थ मे जिन्होंने अंग्रेजो को प्लास्टिक सेर्जेरी सिखाई थी|
1780 मे दक्षिण भारत के कर्णाटक राज्य के एक बड़े भू भाग का राजा था हयदर अली| 1780-84 के बीच मे अंग्रेजों ने हयदर अली के ऊपर कई बार हमले किये और एक हमले का जिक्र एक अंग्रेज की डायरी मे से मिला है| एक अंग्रेज का नाम था कोर्नेल कूट उसने हयदर अली पर हमला किया पर युद्ध मे अंग्रेज परास्त हो गए और हयदर अली ने कोर्नेल कूट की नाक काट दी|
कोर्नेल कूट अपनी डायरी मे लिखता है के “मैं पराजित हो गया, सैनिको ने मुझे बन्दी बना लिया, फिर मुझे हयदर अली के पास ले गए और उन्होंने मेरा नाक काट दिया|” फिर कोर्नेल कूट लिखता है के “मुझे घोडा दे दिया भागने के लिए नाक काट के हात मे दे दिया और कहा के भाग जाओ तो मैं घोड़े पे बैठ के भागा| भागते भागते मैं बेलगाँव मे आ गया, बेलगाँव मे एक वैद्य ने मुझे देखा और पूछा मेरी नाक कहाँ कट गयी? तो मैं झूट बोला के किसीने पत्थर मार दिया, तो वैद्य ने बोला के यह पत्थर मारी हुई नाक नही है यह तलवार से काटी हुई नाक है, मैं वैद्य हूँ मैं जानता हूँ| तो मैंने वैद्य से सच बोला के मेरी नाक काटी गयी है| वैद्य ने पूछा किसने काटी? मैंने बोला तुम्हारी राजा ने काटी| वैद्य ने पूछा क्यों काटी तो मैंने बोला के उनपर हमला किया इसलिए काटी|फिर वैद्य बोला के तुम यह काटी हुई नाक लेके क्या करोगे? इंग्लैंड जाओगे? तो मैंने बोला इच्छा तो नही है फिर भी जाना हि पड़ेगा|”
यह सब सुनके वो दयालु वैद्य कहता है के मैं तुम्हारी नाक जोड़ सकता हूँ, कोर्नेल कूट को पहले विस्वास नही हुआ, फिर बोला ठेक है जोड़ दो तो वैद्य बोला तुम मेरे घर चलो| फिर वैद्य ने कोर्नेल को ले गया और उसका ऑपरेशन किया और इस ऑपरेशन का तिस पन्ने मे वर्णन है| ऑपरेशन सफलता पूर्वक संपन्न हो गया नाक उसकी जुड़ गयी, वैद्य जी ने उसको एक लेप दे दिया बनाके और कहा की यह लेप ले जाओ और रोज सुबह शाम लगाते रहना| वो लेप लेके चला गया और 15-17 दिन के बाद बिलकुल नाक उसकी जुड़ गयी और वो जहाज मे बैठ कर लन्दन चला गया|
फिर तिन महीने बाद ब्रिटिश पार्लियामेन्ट मे खड़ा हो कोर्नेल कूट भाषण दे रहा है और सबसे पहला सवाल पूछता है सबसे के आपको लगता है के मेरी नाक कटी हुई है? तो सब अंग्रेज हैरान होक कहते है अरे नही नही तुम्हारी नाक तो कटी हुई बिलकुल नही दिखती| फिर वो कहानी सुना रहा है ब्रिटिश पार्लियामेन्ट मे के मैंने हयदर अली पे हमला किया था मैं उसमे हार गया उसने मेरी नाक काटी फिर भारत के एक वैद्य ने मेरी नाक जोड़ी और भारत की वैद्यों के पास इतनी बड़ी हुनर है इतना बड़ा ज्ञान है की वो काटी हुई नाक को जोड़ सकते है|
फिर उस वैद्य जी की खोंज खबर ब्रिटिश पार्लियामेन्ट मे ली गयी, फिर अंग्रेजो का एक दल आया और बेलगाँव की उस वैद्य को मिला, तो उस वैद्य ने अंग्रेजो को बताया के यह काम तो भारत के लगभग हर गाँव मे होता है; मैं एकला नहीं हूँ ऐसा करने वाले हजारो लाखों लोग है| तो अंग्रेजों को हैरानी हुई के कोन सिखाता है आपको ? तो वैद्य जी कहने लगे के हमारे इसके गुरुकुल चलते है और गुरुकुलों मे सिखाया जाता है|
फिर अंग्रेजो ने उस गुरुकुलों मे गए उहाँ उन्होंने एडमिशन लिया, विद्यार्थी के रूप मे भारती हुए और सिखा, फिर सिखने के बाद इंग्लॅण्ड मे जाके उन्होंने प्लास्टिक सर्जरी शुरू की| और जिन जिन अंग्रेजों ने भारत से प्लास्टिक सर्जरी सीखी है उनकी डायरियां हैं| एक अंग्रेज अपने डायरी मे लिखता है के ‘जब मैंने पहली बार प्लास्टिक सर्जरी सीखी, जिस गुरु से सीखी वो भारत का विशेष आदमी था और वो नाइ था जाती का| मने जाती का नाइ, जाती का चर्मकार या कोई और हमारे यहाँ ज्ञान और हुनर के बड़े पंडित थे| नाइ है, चर्मकार है इस आधार पर किसी गुरुकुल मे उनका प्रवेश वर्जित नही था, जाती के आधार पर हमारे गुरुकुलों मे प्रवेश नही हुआ है, और जाती के आधार पर हमारे यहाँ शिक्षा की भी व्यवस्था नही था| वर्ण व्यवस्था के आधार पर हमारे यहाँ सबकुछ चलता रहा| तो नाइ भी सर्जन है चर्मकार भी सर्जन है| और वो अंग्रेज लिखता है के चर्मकार जादा अच्चा सर्जन इसलिए हो सकता है की उसको चमड़ा सिलना सबसे अच्छे तरीके से आता है|
एक अंग्रेज लिख रहा है के ‘मैंने जिस गुरु से सर्जरी सीखी वो जात का नाइ था और सिखाने के बाद उन्होंने मुझसे एक ऑपरेशन करवाया और उस ऑपरेशन की वर्णन है| 1792 की बात है एक मराठा सैनिक की दोनों हात युद्ध मे कट गए है और वो उस वैद्य गुरु के पास कटे हुए हात लेके आया है जोड़ने के लिए| तो गुरु ने वो ऑपरेशन उस अंग्रेज से करवाया जो सिख रहा था, और वो ऑपरेशन उस अंग्रेज ने गुरु के साथ मिलके बहुत सफलता के साथ पूरा किया| और वो अंग्रेज जिसका नाम डॉ थॉमस क्रूसो था अपनी डायरी मे कह रहा है के “मैंने मेरे जीवन मे इतना बड़ा ज्ञान किसी गुरु से सिखा और इस गुरु ने मुझसे एक पैसा नही लिया यह मैं बिलकुल अचम्भा मानता हूँ आश्चर्य मानता हूँ|” और थॉमस क्रूसो यह सिख के गया है और फिर उसने प्लास्टिक सेर्जेरी का स्कूल खोला, और उस स्कूल मे फिर अंग्रेज सीखे है, और दुनिया मे फैलाया है| दुर्भाग्य इस बात का है के सारी दुनिया मे प्लास्टिक सेर्जेरी का उस स्कूल का तो वर्णन है लेकिन इन वैद्यो का वर्णन अभी तक नही आया विश्व ग्रन्थ मे जिन्होंने अंग्रेजो को प्लास्टिक सेर्जेरी सिखाई थी|
भारत आजाद होने के 50 साल बाद भी इस देश के संसद मे बजट शाम को 5 बजे पेश होता था 1997 तक |
एक बार राजीव भाई ने भारत के एक पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को प्रश्न किया था के बजट शाम को 5 बजे क्यों आता है ? संसद तो सबेरे 10 बजे से चलती है शाम को 5 बजे बजट क्यों आता है ? संसद जब ख़तम होने को आती है तब शाम को 5 बजे बजट क्यों आता है ?
तब उन्होंने कहा के यह अंग्रेजो के ज़माने के नियम है | अब अंग्रेज जब इस देश की संसद मे बैठते थे दिल्ली मे, 1927 से अंग्रेजो ने संसद मे बैठना शुरू किया, तो यहाँ जब शाम के 5 बजते है तब लन्दन मे सबेरे के साड़े गैरा बजते है | अब लन्दन मे ‘House of Commons’ और ‘House of Lords’ मे बैठे हुए MPs को भारत का बजट सुनना होता था, तो इसलिए यहाँ शाम को 5 बजे बजट पेश किया जाता था ताकि सबेरे साड़े गैरा बजे वो लोग सुन सके |
तो ठीक है 1947 के पहले ये सब चलता था तो हमने मान लिया पर 1947 बाद 50 साल तक ये क्यों चलता रहा इस देश मे ? क्यों नही बदला हमने इस नियम को ?
जब पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने राजीव भाई से कहा के वो तो अंग्रेजो के ज़माने के नियम है, तब राजीव भाई ने कहा के अंग्रेजों ने यह कह दिया था के हमारे जाने के बाद भी इसे मत बदलना ! हमारी अकल नही है? हमारी बुद्धि नही है ? हमको समझ नही है ? यह ब्रिटिश पार्लियामेंट को सुनाने के लिए होता था अब हमारे उनसे क्या कनेक्शन है ? क्या लेना देना है ?
और जब ये बहस संसद मे हुई तो किसदीन हुई ? हिन्दुस्तान की आज़ादी का 50 साल का एक उत्सव हुआ था संसद मे, रात को 12 बजे संसद मे विशेष अधिवेशन हुआ, उस समय चंद्रशेखर ने ये मुद्दा उठाया, और बहुत हंगामा हुआ संसद मे इसपर, तब जा कर सरकार ने ये माना की हाँ 50 साल से हम गलती कर रहें है और इसको सुधार जायेगा | अगले साल 1998 से बजट सबेरे 11 बजे पेश होने लगा | माने इस छोटी सी व्यवस्था को बदलने मे 50 साल लग गए ... सोचिये हमारी आज़ादी का क्या अर्थ है ?
एक बार राजीव भाई ने भारत के एक पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को प्रश्न किया था के बजट शाम को 5 बजे क्यों आता है ? संसद तो सबेरे 10 बजे से चलती है शाम को 5 बजे बजट क्यों आता है ? संसद जब ख़तम होने को आती है तब शाम को 5 बजे बजट क्यों आता है ?
तब उन्होंने कहा के यह अंग्रेजो के ज़माने के नियम है | अब अंग्रेज जब इस देश की संसद मे बैठते थे दिल्ली मे, 1927 से अंग्रेजो ने संसद मे बैठना शुरू किया, तो यहाँ जब शाम के 5 बजते है तब लन्दन मे सबेरे के साड़े गैरा बजते है | अब लन्दन मे ‘House of Commons’ और ‘House of Lords’ मे बैठे हुए MPs को भारत का बजट सुनना होता था, तो इसलिए यहाँ शाम को 5 बजे बजट पेश किया जाता था ताकि सबेरे साड़े गैरा बजे वो लोग सुन सके |
तो ठीक है 1947 के पहले ये सब चलता था तो हमने मान लिया पर 1947 बाद 50 साल तक ये क्यों चलता रहा इस देश मे ? क्यों नही बदला हमने इस नियम को ?
जब पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने राजीव भाई से कहा के वो तो अंग्रेजो के ज़माने के नियम है, तब राजीव भाई ने कहा के अंग्रेजों ने यह कह दिया था के हमारे जाने के बाद भी इसे मत बदलना ! हमारी अकल नही है? हमारी बुद्धि नही है ? हमको समझ नही है ? यह ब्रिटिश पार्लियामेंट को सुनाने के लिए होता था अब हमारे उनसे क्या कनेक्शन है ? क्या लेना देना है ?
और जब ये बहस संसद मे हुई तो किसदीन हुई ? हिन्दुस्तान की आज़ादी का 50 साल का एक उत्सव हुआ था संसद मे, रात को 12 बजे संसद मे विशेष अधिवेशन हुआ, उस समय चंद्रशेखर ने ये मुद्दा उठाया, और बहुत हंगामा हुआ संसद मे इसपर, तब जा कर सरकार ने ये माना की हाँ 50 साल से हम गलती कर रहें है और इसको सुधार जायेगा | अगले साल 1998 से बजट सबेरे 11 बजे पेश होने लगा | माने इस छोटी सी व्यवस्था को बदलने मे 50 साल लग गए ... सोचिये हमारी आज़ादी का क्या अर्थ है ?
Sunday 26 May 2013
खड़े होकर भोजन करने से हानियाँ...
जब हम किसी सुविधा के आदी (गुलाम) हो जाते है या जब
कोई चीज प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दी जाती है या जब
कोई चीज घर घर में पहुँच जाती है, तब वह चाहे
कितनी भी अवैज्ञानिक क्यों न हो कितने ही रोग
पैदा कराने वाली क्यूँ न हो , हम अपने मानसिक
विकारों (लत,दिखावा, भेड़चाल आदि) के कारण उसकी असलियत को जानना ही नहीं चाहते है और
यदि कोई बता दे तो वही व्यक्ति को हम
दक़ियानूसी मानते है और इन मानसिक विकारों के
कारण हमारे दिमाग मे सेकड़ों तर्क उठने लगते है,
हमारी हर परम्पराओं मे वैज्ञानिकता थी , आज के
युवा कब समझेंगे ?
खड़े होकर भोजन करने से हानियाँ : ( Buffet System's
disadvantage )
- खड़े होकर भोजन करने से निचले अंगों में वात रोग
(कब्ज, गैस, घुटनों का दर्द, कमर दर्द आदि) बढ़ते है, और
कब्ज बीमारियों का बादशाह है ।
- खड़े होकर भोजन करने से यौन रोगो की संभावना प्रबल
होती है, जिसमे नपुंसकता, किडनी की बीमारियाँ,
पथरी रोग
- पैरो में जूते चप्पल होने से पैर गरम रहते है
जबकि आयुर्वेद के अनुसार भोजन करते समय पैर ठंडे रहने
चाहिए, इसलिए हमारे देश में भोजन करने से पहले हाथ के
साथ पैर धोने की परंपरा है !
- बार बार कतार मे लगने से बचने के लिए
थाली को अधिक भर लिया जाता है जिससे जूठन
अधिक छोडी जाती है, और अन्न देवता का अपमान है,
खड़े होकर भोजन करने की आदत असुरो की है
भारतीयों की नहीं ।
- जिस पात्र मे परोसा जाता है, वह सदैव पवित्र
होना चाहिए, लेकिन इस परंपरा में झूठे हाथो के लगने से
ये पात्र अपवित्र हो जाते है
(जूठे के लिए अँग्रेजी शब्दकोश मे कोई शब्द ही नहीं है,
क्योंकि वहाँ जूठे की अवधारणा ही नहीं है )
- पंगत मे भोजन कराने से उस व्यक्ति की शान होती है,
वह व्यक्ति गुणी होता है
- विवाह समारोह आदि मे मेहमानो को खड़े होकर
भोजन करने से मेहमान का अपमान होता है
आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
1.अगर आप कत्ल खाना खोलते हो तो ५ साल तक इन्कम
टेक्स माफ़ी है l
2. केंद्र सरकार ५० करोड़ तक
सबसीडी देती है, अगर आप कत्लखान खोलते है
तो l
3. दिल्ली सरकार इस मटन को एक्सपोर्ट करने
के लिए रास्ते में जितना सफर करना पड़ता है, पर
किलोमीटर ट्रांसपोर्टटेशन एलाउंस ये दिल्ली की सरकार देती है।
4. इसके कारण हमारे
पशुधन की कत्ले आम चल रही है,
हमारी गायो की कत्ले आम हो रही है,
हमारी गायो को विदेश भेजा रहा है l
5. दिल्ली की सरकार चुपचाप बैठी है, और इस प्रकार
दिल्ली के नेता चुनावी वादे करते है l
Thursday 23 May 2013
Kuch jaane medicines ke bare me jo aapka parivaar har rajo khata hai.....
आदरणीय राष्ट्रप्रेमी भाईयों और बहनों
आज मैं भारत में जारी एक बहुत बड़े षड़यंत्र के ऊपर आप लोगों का ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा जिसे आप "मौत का व्यापार" कह सकते हैं और ये व्यापार है अंग्रेजी दवाओं का, क्यों कि भारत अंग्रेजी दवाओं का Dumping Ground बन गया है | जो दवाई विश्व में कहीं नहीं मिलेगी वो भारत में आपको मिल जाएगी और ऐसी कई दवाये हैं जिनका कोई लेबोरेटरी टेस्ट भी नहीं हुआ रहता है और वो भारत के बाज़ार में धड़ल्ले से बिक रहा हैं | और हमेशा की तरह ये लेख भी परम सम्मानीय भाई राजीव दीक्षित जी के व्याख्यानों से जोड़ के मैंने बनाया है |
मौत का व्यापार
भारत सरकार ने 1974 में श्री जयसुखलाल हाथी की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई थी, जिसे हम हाथी कमिटी या हाथी कमीशन के रिपोर्ट के रूप में जानते हैं और जिसे कहा गया था कि बाज़ार में कौन कौन से दवाएं हैं जो हमारे लिए सबसे जरूरी हैं और जिनके बिना हमारा काम नहीं चल सकता | हाथी कमिटी ने अपनी रिपोर्ट 1975 में तैयार कर सरकार को बताया कि भारत के मौसम, वातावरण और जरूरत के हिसाब से 117 दवाएं काफी जरूरी हैं | इन 117 दवाओं में छोटे बीमारी (खांसी, बुखार, आदि) से लेकर बड़ी बिमारियों (कैंसर) तक की दवा थी | कमिटी ने कहा कि ये वो दवाएं हैं जिनके बिना हमारा काम नहीं चल सकता | कुछ सालों बाद विश्व स्वस्थ्य संगठन (WHO) ने कहा कि ये लिस्ट कुछ पुरानी हो गयी हैं और उसने हाथी कमिटी की लिस्ट को बरक़रार रखते हुए कुछ और दवाएं इसमें जोड़ी और ये लिस्ट हो गया 350 दवाओं का | मतलब हमारे देश के लोगों को केवल 350 दवाओं की जरुरत है किसी भी प्रकार की बीमारी से लड़ने के लिए, चाहे वो बुखार हो या कैंसर लेकिन हमारे देश में बिक रही है 84000 दवाएं |
हमारे भारत में एक मंत्रालय है जो परिवार कल्याण एवं स्वास्थ्य मंत्रालय कहलाता है | हमारी भारत सरकार प्रति वर्ष करीब 23700 करोड़ रुपये लोगों के स्वास्थ्य पर खर्च करती है | फिर भी हमारे देश में ये बीमारियाँ बढ़ रही है | आइये कुछ आंकड़ों पर नजर डालते है -
भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि सन 1951 में भारत की आबादी करीब 34 करोड़ थी जो सन 2012 तक 120 करोड़ हो गई है |
सन 1951 में पूरे भारत में 4780 अंग्रेजी डॉक्टर थे, जो सन 2012 तक बढ़कर करीब 18,00,000 (18 लाख) हो गयी है |
सन 1947 में भारत में एलोपेथी दवा बनाने वाली करीब 10-12 कंपनिया ही हुआ करती थी जो आज बढ़कर करीब 20 हजार हो गई है |
सन 1951 में पूरे भारत में करीब 70 प्रकार की दवाइयां बिका करती थी और आज इन दवाओं की संख्या बढ़कर करीब 84000 (84 हजार) हो गई है|
सन 1951 में भारत में बीमार लोगों की संख्या करीब 5 करोड़ थी आज बीमार लोगों की संख्या करीब 100 करोड़ हो गई है |
हमारी भारत सरकार ने पिछले 64 सालों में अस्पतालों पर, दवाओ पर, डॉक्टर और नर्सों पर, ट्रेनिंग वगेरह वगेरह में सरकार ने जितना खर्च किया उसका 5 गुना यानी करीब 50 लाख करोड़ रूपया खर्च कर चुकी है | आम जनता ने जो अपने इलाज के लिए पैसे खर्च किये वो अलग है | आम जनता का लगभग 50 लाख करोड़ रूपया बर्बाद हुआ है पिछले 64 सालों में इलाज के नाम पर, बिमारियों के नाम पर | इतना सारा पैसा खर्च करने के बाद भी भारत में रोग और बीमारियाँ बढ़ी है |
हमारे देश में आज करीब 5 करोड़ 70 लाख लोग डाईबिटिज (मधुमेह) के मरीज है | और भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि करीब 3 करोड़ लोगों को डाईबिटिज होने वाली है |
हमारे देश में आज करीब 4 करोड़ 80 लाख लोग ह्रदय सम्बन्धी विभिन्न रोगों से ग्रसित है |
करीब 8 करोड़ लोग कैंसर के मरीज है | भारत सरकार कहती है कि 25 लाख लोग हर साल कैंसर के कारण मरते है |
12 करोड़ लोगों को आँखों की विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ है |
14 करोड़ लोगों को छाती की बीमारियाँ है |
14 करोड़ लोग गठिया रोग से पीड़ित है |
20 करोड़ लोग उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure ) और निम्न रक्तचाप (Low Blood Pressure ) से पीड़ित है |
27 करोड़ लोगों को हर समय 12 महीने सर्दी, खांसी, जुकाम, कलरा, हैजा आदि सामान्य बीमारियाँ लगी ही रहती है |
30 करोड़ भारतीय महिलाएं एनीमिया की शिकार है | एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी | महिलाओं में खून की कमी से पैदा होने वाले करीब 56 लाख बच्चे जन्म लेने के पहले साल में ही मर जाते है | यानी पैदा होने के एक साल के अन्दर-अन्दर उनकी मृत्यु हो जाती है | क्यों कि खून की कमी के कारण महिलाओं में दूध प्रयाप्त मात्र में नहीं बन पाता | प्रति वर्ष 70 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार होते है | कुपोषण के मायने उनमे खून की कमी, फास्फोरस की कमी, प्रोटीन की कमी, वसा की कमी, वगैरह-वगैरह .......
ऊपर बताये गए सारे आंकड़ों से एक बात साफ़ तौर पर साबित होती है कि भारत में एलोपेथी का इलाज कारगर नहीं हुआ है, एलोपेथी का इलाज सफल नहीं हो पाया है | इतना पैसा खर्च करने के बाद भी बीमारियाँ कम नहीं हुई बल्कि और बढ़ गई है | यानि हम बीमारी को ठीक करने के लिए जो एलोपेथी दवा खाते है उससे और नई तरह की बीमारियाँ सामने आने लगी है |
पहले मलेरिया हुआ करता था | मलेरिया को ठीक करने के लिए हमने जिन दवाओ का इस्तेमाल किया उनसे डेंगू, चिकनगुनिया और न जाने क्या-क्या नई-नई तरह की बुखारे, बिमारियों के रूप में पैदा हो गई है | किसी ज़माने में सरकार दावा करती थी कि हमने छोटी माता / बड़ी माता और टी.बी. जैसी घातक बिमारियों पर विजय प्राप्त कर ली है लेकिन हाल ही में ये बीमारियाँ फिर से अस्तित्व में आ गई है, फिर से लौट आई है | यानी एलोपेथी दवाओं ने बीमारियाँ कम नहीं की और ज्यादा बढ़ायी है |
यानि धीरे धीरे ये दवा कम्पनियां भारत में व्यापार बढाने लगी और इनके व्यापार को बढ़ावा दिया हमारी सरकारों ने | ऐसा इसलिए हुआ क्यों कि हमारे नेताओं को इन दवा कंपनियों ने खरीद लिया | हमारे नेता लालच में आ गए और अपना व्यापार धड़ल्ले से शुरू करवा दिया | इसी के चलते जहाँ हमारे देश में सन 1951 में 10-12 दवा कंपनिया हुआ करती थी वो आज बढ़कर 20000 से ज्यादा हो गई है | 1951 में जहाँ लगभग 70 कुल दवाइयां हुआ करती थी आज की तारीख में ये 84000 से भी ज्यादा हो गयी हैं | फिर भी रोग कम नहीं हो रहे है, बिमारियों से पीछा नहीं छूट रहा है |
आखिर सवाल खड़ा होता है कि इतनी सारे जतन करने के बाद भी बीमारियाँ कम क्यों नहीं हो रही है | इसकी गहराई में जाए तो हमे पता लगेगा कि मानव के द्वारा निर्मित ये दवाए किसी भी बीमारी को जड़ से समाप्त नहीं करती बल्कि उसे कुछ समय के लिए रोके रखती है | जब तक दवा का असर रहता है तब तक ठीक, दवा का असर खत्म हुआ तो बीमारियाँ फिर से हावी हो जाती है | दूसरी बात इन दवाओं के साइड इफेक्ट बहुत ज्यादा है यानी एक बीमारी को ठीक करने के लिए दवा खाओ तो एक दूसरी बीमारी पैदा हो जाती है | आपको कुछ उदहारण दे कर समझाता हूँ -
Antipyretic - बुखार को ठीक करने के लिए हम एंटीपायिरेटिक दवाएं खाते है जैसे - पैरासिटामोल, आदि | बुखार की ऐसी सैकड़ों दवाएं बाजार में बिकती है | ये एंटीपायिरेटिक दवाएं हमारे गुर्दे ख़राब करती है | गुर्दा ख़राब होने का सीधा मतलब है कि पेशाब से सम्बंधित कई बिमारियों का पैदा होना, जैसे पथरी, मधुमेह, और न जाने क्या क्या | एक गुर्दा खराब होता है, उसके बदले में नया गुर्दा लगाया जाता है तो ऑपरेशन का खर्चा करीब 3.50 लाख रुपये का होता है |
Antidiarrheal - इसी तरह से हम लोग दस्त की बीमारी में antidiarrheal दवाए खाते है | ये antidiarrheal दवाएं हमारी आँतों में घाव करती है जिससे कैंसर, अल्सर, आदि भयंकर बीमारियाँ पैदा होती है |
Analgesic (commonly known as a Painkiller) - इसी तरह हमें सरदर्द होता है तो हम एनाल्जेसिक दवाए खाते है जैसे एस्प्रिन, डिस्प्रिन, कोल्डरिन, ऐसी और भी सैकड़ो दवाए है | ये एनाल्जेसिक दवाए हमारे खून को पतला करती है | आप जानते है कि खून पतला हो जाये तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और कोई भी बीमारी आसानी से हमारे ऊपर हमला बोल सकती है |
आप आये दिन अखबारों में या टी वी पर सुना होगा की किसी का एक्सिडेंट हो जाता है तो उसे अस्पताल ले जाते ले जाते रस्ते में ही उसकी मौत हो जाती है | समझ में नहीं आता कि अस्पताल ले जाते ले जाते मौत कैसे हो जाती है ? होता क्या है कि जब एक्सिडेंट होता है तो जरा सी चोट से ही खून शरीर से बाहर आने लगता है और क्यों कि खून पतला हो जाता है तो खून का थक्का नहीं बनता जिससे खून का बहाव रुकता नहीं है और खून की कमी लगातार होती जाती है और कुछ ही देर में उसकी मौत हो जाती है |
पिछले करीब 30 से 40 सालों में कई सारे देश है जहाँ पे ऊपर बताई गई लगभग सारी दवाएं बंद हो चुकी है | जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, और भी कई देश में जहा ये दवाए न तो बनती और न ही बिकती है लेकिन हमारे देश में ऐसी दवाएं धड़ल्ले से बन रही है, बिक रही है | इन 84000 दवाओं में अधिकतर तो ऐसी है जिनकी हमारे शरीर को जरुरत ही नहीं है | यानी जिन दवाओं कि जरूरत ही नहीं है वो डॉक्टर हमे लिखते है | मजेदार बात ये है कि डॉक्टर कभी भी इन दवाओं का इस्तेमाल नहीं करता और न अपने बच्चो को खिलाता है | ये सारी दवाएं तो आप जैसे और हम जैसे लोगों को लिखी जाती है | वो ऐसा इसलिए करते है क्यों कि उनको इन दवाओं के साइड इफ़ेक्ट पता होता है और कोई भी डॉक्टर इन दवाओं के साइड इफ़ेक्ट के बारे में कभी किसी मरीज को नहीं बताता | अगर भूल से पूछ बैठो तो डॉक्टर कहता है कि "तुम ज्यादा जानते हो या मैं ?" दूसरी और चौकाने वाली बात ये है कि ये दवा कंपनिया बहुत बड़ा कमीशन देती है डॉक्टर को | यानी डॉक्टर कमिशनखोर हो गए है या यूँ कहे कि डॉक्टर दवा कम्पनियों के एजेंट हो गए है तो गलत नहीं होगा |
इसके अलावा ये कंपनियाँ टेलीविजन के माध्यम से, पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से, अख़बारों के माध्यम से फिजूल की दवाएं भारत के बाजार में बेच लेती हैं | आप जानेंगे तो आश्चर्य करेंगे कि दुनिया भर के देशों में एक अंतर्राष्ट्रीय कानून है कि दवाओं का विज्ञापन आप टेलीविजन पर, पत्र-पत्रिकाओं में, अख़बारों में नहीं कर सकते, लेकिन भारत में धड़ल्ले से हर माध्यम में दवाओं का विज्ञापन आता है, और भारत में भी ये कानून लागु है, उसके बावजूद आता है | जब इससे सम्बंधित विभागों के अधिकारियों से बात कीजिये तो वो कहते हैं कि " हम क्या कर सकते हैं, आप जानते हैं कि भारत में सब संभव है" | तो ऐसी बहुत सारी फालतू की दवाएँ हजारों की संख्या में भारत के बाजार में बेचीं जा रही है |
आपने एक नाम सुना होगा M.R. यानि मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव | ये नाम अभी हाल के कुछ वर्षो में ही अस्तित्व में आया है | ये MR नाम का विचित्र प्राणी कई तरह की दवा कम्पनियों की दवाएं डॉक्टर के पास ले जाते है और इन दवाओं को बिकवाते है | ये दवा कंपनिया 40-40% तक कमीशन डॉक्टर को सीधे तौर पर देती है | जो बड़े बड़े शहरों में दवा कंपनिया है नकद में डॉक्टर को कमिसन देती है | ऑपरेशन करते है तो उसमे कमीशन खाते है, एक्सरे में कमीशन, विभिन्न प्रकार की जांचे करवाते है डॉक्टर , उसमे कमीशन, सबमे इनका कमीशन फिक्स रहता है | जिन बिमारियों में जांचों की कोई जरुरत ही नहीं होती उनमे भी डॉक्टर जाँच करवाने के लिए लिख देते है ये जाँच कराओ, वो जाँच करवाओ आदि आदि | कई बीमारियाँ ऐसी है जिसमे दवाएं जिंदगी भर खिलाई जाती है | जैसे हाई-ब्लड प्रेसर या लो-ब्लड प्रेसर, डाईबिटिज, आदि | यानी जब तक दवा खाओगे आपकी धड़कन चलेगी, दवाएं बंद तो धड़कन बंद | जितने भी डॉक्टर है उनमे से 99% डॉक्टर कमिशनखोर हैं केवल 1% इमानदार डॉक्टर है जो सही मायने में मरीजो का सही इलाज करते है |
सारांश के रूप में अगर हम कहे कि मौत का खुला व्यापार धड़ल्ले से पूरे भारत में चल रहा है तो कोई गलत नहीं होगा | अभी भारत सरकार ने नई ड्रग प्राइसिंग पालिसी लाया है देखिये उसके माध्यम से क्या गुल खिलाती हैं ये दवा कंपनियां |
जय हिंद
Tuesday 14 May 2013
मित्रो बहुत से लोग नशा छोडना चाहते है पर उनसे छुटता नहीं है....
मित्रो बहुत से लोग नशा छोडना चाहते है पर उनसे छुटता नहीं है !बार बार वो कहते है हमे मालूम है ये गुटका खाना अच्छा नहीं है लेकिन तलब उठ जाती है तो क्या करे ???
बार बार लगता है ये बीड़ी सिगरेट पीना अच्छा नहीं है लेकिन तलब उठ जाती है तो क्या करे !??
बार बार महसूस होता है यह शाराब पीना अच्छा नहीं है लेकिन तलब हो जाती है तो क्या करे ! ????
तो आपको बीड़ी सिगरेट की तलब न आए गुटका खाने के तलब न लगे ! शारब पीने की तलब न लगे ! इसके लिए बहुत अच्छे दो उपाय है जो आप बहुत आसानी से कर सकते है ! पहला ये की जिनको बार बार तलब लगती है जो अपनी तलब पर कंट्रोल नहीं कर पाते नियंत्रण नहीं कर पाते इसका मतलब उनका मन कमजोर है ! तो पहले मन को मजबूत बनाओ!
मन को मजबूत बनाने का सबसे आसान उपाय है पहले थोड़ी देर आराम से बैठ जाओ ! आलती पालती मर कर बैठ जाओ ! जिसको सुख आसन कहते हैं ! और फिर अपनी आखे बंद कर लो फिर अपनी दायनी(right side) नाक बंद कर लो और खाली बायी(left side) नाक से सांस भरो और छोड़ो ! फिर सांस भरो और छोड़ो फिर सांस भरो और छोड़ो !
बायीं नाक मे चंद्र नाड़ी होती है और दाई नाक मे सूर्य नाड़ी ! चंद्र नाड़ी जितनी सक्रिये (active) होगी उतना इंसान का मन मजबूत होता है ! और इससे संकल्प शक्ति बढ़ती है ! चंद्र नाड़ी जीतने सक्रिये होती जाएगी आपकी मन की शक्ति उतनी ही मजबूत होती जाएगी ! और आप इतने संकल्पवान हो जाएंगे ! और जो बात ठान लेंगे उसको बहुत आसानी से कर लेगें ! तो पहले रोज सुबह 5 मिनट तक नाक की right side को दबा कर left side से सांस भरे और छोड़ो ! ये एक तरीका है ! और बहुत आसन है !
दूसरा एक तरीका है आपके घर मे एक आयुर्वेदिक ओषधि है जिसको आप सब अच्छे से जानते है और पहचानते हैं ! राजीव भाई ने उसका बहुत इस्तेमाल किया है लोगो का नशा छुड्वने के लिए ! और उस ओषधि का नाम है अदरक ! और आसानी से सबके घर मे होती है ! इस अदरक के टुकड़े कर लो छोटे छोटे उस मे नींबू निचोड़ दो थोड़ा सा काला नमक मिला लो और इसको धूप मे सूखा लो ! सुखाने के बाद जब इसका पूरा पानी खतम हो जाए तो इन अदरक के टुकड़ो को अपनी जेब मे रख लो ! जब भी दिल करे गुटका खाना है तंबाकू खाना है बीड़ी सिगरेट पीनी है ! तो आप एक अदरक का टुकड़ा निकालो मुंह मे रखो और चूसना शुरू कर दो ! और यह अदरक ऐसे अदबुद चीज है आप इसे दाँत से काटो मत और सवेरे से शाम तक मुंह मे रखो तो शाम तक आपके मुंह मे सुरक्षित रहता है ! इसको चूसते रहो आपको गुटका खाने की तलब ही नहीं उठेगी ! तंबाकू सिगरेट लेने की इच्छा ही नहीं होगी शराब पीने का मन ही नहीं करेगा !
बहुत आसन है कोई मुश्किल काम नहीं है ! फिर से लिख देता हूँ !
अदरक के टुकड़े कर लो छोटे छोटे उस मे नींबू निचोड़ दो थोड़ा सा काला नमक मिला लो और इसको धूप मे सूखा लो ! सुखाने के बाद जब इसका पूरा पानी खतम हो जाए तो इन अदरक के टुकड़ो को अपनी जेब मे रख लो ! डिब्बी मे रखो पुड़िया बना के रखो जब तलब उठे तो चूसो और चूसो !
जैसे ही इसका रस लाड़ मे घुलना शुरू हो जाएगा आप देखना इसका चमत्कारी असर होगा आपको फिर गुटका –तंबाकू शराब –बीड़ी सिगरेट आदि की इच्छा ही नहीं होगी ! सुबह से शाम तक चूसते रहो ! और 10 -15 -20 दिन लगातार कर लिया ! तो हमेशा के लिए नशा आपका छूट जाएगा !
आप बोलेगे ये अदरक मैं ऐसे क्या चीज है !????
यह अदरक मे एक ऐसे चीज है जिसे हम रसायनशास्त्र (क्मिस्ट्री) मे कहते है सल्फर !
अदरक मे सल्फर बहुत अधिक मात्रा मे है ! और जब हम अदरक को चूसते है जो हमारी लार के साथ मिल कर अंदर जाने लगता है ! तो ये सल्फर जब खून मे मिलने लगता है ! तो यह अंदर ऐसे हारमोनस को सक्रिय कर देता है ! जो हमारे नशा करने की इच्छा को खत्म कर देता है !
और विज्ञान की जो रिसर्च है सारी दुनिया मे वो यह मानती है की कोई आदमी नशा तब करता है ! जब उसके शरीर मे सल्फर की कमी होती है ! तो उसको बार बार तलब लगती है बीड़ी सिगरेट तंबाकू आदि की ! तो सल्फर की मात्रा आप पूरी कर दो बाहर से ये तलब खत्म हो जाएगी ! इसका राजीव भाई ने हजारो लोगो पर परीक्षण किया और बहुत ही सुखद प्रणाम सामने आए है ! बिना किसी खर्चे के शराब छूट जाती है बीड़ी सिगरेट शराब गुटका आदि छूट जाता है ! तो आप इसका प्रयोग करे !
और इसका दूसरे उपयोग का तरीका पढे !
अदरक के रूप मे सल्फर भगवान ने बहुत अधिक मात्रा मे दिया है ! और सस्ता है! इसी सल्फर को आप होमिओपेथी की दुकान से भी प्राप्त कर सकते हैं ! आप कोई भी होमिओपेथी की दुकान मे चले जाओ और विक्रेता को बोलो मुझे सल्फर नाम की दावा देदो ! वो देदेगा आपको शीशी मे भरी हुई दावा देदेगा ! और सल्फर नाम की दावा होमिओपेथी मे पानी के रूप मे आती है प्रवाही के रूप मे आती है जिसको हम Dilution कहते है अँग्रेजी मे !
तो यह पानी जैसे आएगी देखने मे ऐसे ही लगेगा जैसे यह पानी है ! 5 मिली लीटर दवा की शीशी 5 रूपये आती है ! और उस दवा का एक बूंद जीभ पर दाल लो सवेरे सवेरे खाली पेट ! फिर अगले दिन और एक बूंद डाल लो ! 3 खुराक लेते ही 50 से 60 % लोग की दारू छूट जाती है ! और जो ज्यादा पियाकड़ है !जिनकी सुबह दारू से शुरू होती है और शाम दारू पर खतम होती है ! वो लोग हफ्ते मे दो दो बार लेते रहे तो एक दो महीने तक करे बड़े बड़े पियकरों की दारू छूट जाएगी !राजीव भाई ने ऐसे ऐसे पियकारों की दारू छुड़ाई है ! जो सुबह से पीना शुरू करते थे और रात तक पीते रहते थे ! उनकी भी दारू छूट गई बस इतना ही है दो तीन महीने का समय लगा !
तो ये सल्फर अदरक मे भी है ! होमिओपेथी की दुकान मे भी उपलब्ध है ! आप आसानी से खरीद सकते है !लेकिन जब आप होमिओपेथी की दुकान पर खरीदने जाओगे तो वो आपको पुछेगा कितनी ताकत की दवा दूँ ??!
मतलब कितनी Potency की दवा दूँ ! तो आप उसको कहे 200 potency की दवा देदो ! आप सल्फर 200 कह कर भी मांग सकते है ! लेकिन जो बहुत ही पियकर है उनके लिए आप 1000 Potency की दवा ले !आप 200 मिली लीटर का बोतल खरीद लो एक 150 से रुपए मे मिलेगी ! आप उससे 10000 लोगो की शराब छुड़वा सकते हैं ! मात्र एक बोतल से ! लेकिन साथ मे आप मन को मजबूत बनाने के लिए रोज सुबह बायीं नाक से सांस ले ! और अपनी इच्छा शक्ति मजबूत करे !!!
अब एक खास बात !
बहुत ज्यादा चाय और काफी पीने वालों के शरीर मे arsenic तत्व की कमी होती है !
उसके लिए आप arsenic 200 का प्रयोग करे !
गुटका,तंबाकू,सिगरेट,बीड़ी पीने वालों के शरीर मे phosphorus तत्व की कमी होती है !
उसके लिए आप phosphorus 200 का प्रयोग करे !
और शराब पीने वाले मे सबसे ज्यादा sulphur तत्व की कमी होती है !
उसके लिए आप sulphur 200 का प्रयोग करे !!
सबसे पहले शुरुवात आप अदरक से ही करे !!
आपने पूरी पोस्ट पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद !
अमर शहीद राजीव दीक्षित जी की जय !
वन्देमातरम !
एक बार यहाँ जरूर क्लिक करे !
Monday 13 May 2013
पेट की वीमारी का इलाज...
राजीव भाई कहते है अगर आपकी पेट ख़राब है दस्त हो गया है , बार बार आपको टॉयलेट जाना पड़ रहा है तो इसकी सबसे अछि दावा है जीरा | अध चम्मच जीरा चबाके खा लो पीछे से गुनगुना पानी पी लो तो दस्त एकदम बंध हो जाते है एक ही खुराख में |
अगर बहुत जादा दस्त हो ... हर दो मिनिट में आपको टॉयलेट जाना पड़ रहा है तो आधा कप कच्चा दूध ले लो बिना गरम किया हुआ और उसमे निम्बू डालके जल्दी से पी लो | दूध फटने से पहले पीना है और बस एक ही खुराक लेना है बस इतने में ही खतरनाक दस्त ठीक हो जाते है |
और एक अछि दावा है ये जो बेल पत्र के पेड़ पर जो फल होते है उसका गुदा चबाके खा लो पीछे से थोडा पानी पी लो ये भी दस्त ठीक कर देता है | बेल का पाउडर मिलता है बाज़ार में उसका एक चम्मच गुनगुना पानी के साथ पी लो ये भी दस्त ठीक कर देता है |
पेट अगर आपका साफ़ नही रहता कब्जियत रहती है तो इसकी सबसे अछि दावा है अजवाईन | इसको गुड में मिलाके चबाके खाओ और पीछे से गरम पानी पी लो तो पेट तुरंत साफ़ होता है , रात को खा के सो जाओ सुबह उठते ही पेट साफ होगा |
और एक अछि दावा है पेट साफ करने की वो है त्रिफला चूर्ण , रात को सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण ले लो पानी के साथ पेट साफ हो जायेगा |
पेट जुडी दो तिन ख़राब बिमारिय है जैसे बवासीर, पाईल्स, हेमोरोइड्स, फिसचुला, फिसर .. ये सब बिमारिओ में अछि दावा है मुली का रस | एक कप मुली का रस पियो खाना खाने के बाद दोपहर को या सबेरे पर शाम को मत पीना तो हर तरेह का बवासीर ठीक हो जाता है , भगंदर ठीक होता है फिसचुला, फिसर ठीक होता है .. अनार का रस पियो तो भी ठीक हो जाता है |
अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:
http://www.youtube.com/ watch?v=PHuYbNe2lBw
वन्देमातरम्
भारत माता की जय
अगर बहुत जादा दस्त हो ... हर दो मिनिट में आपको टॉयलेट जाना पड़ रहा है तो आधा कप कच्चा दूध ले लो बिना गरम किया हुआ और उसमे निम्बू डालके जल्दी से पी लो | दूध फटने से पहले पीना है और बस एक ही खुराक लेना है बस इतने में ही खतरनाक दस्त ठीक हो जाते है |
और एक अछि दावा है ये जो बेल पत्र के पेड़ पर जो फल होते है उसका गुदा चबाके खा लो पीछे से थोडा पानी पी लो ये भी दस्त ठीक कर देता है | बेल का पाउडर मिलता है बाज़ार में उसका एक चम्मच गुनगुना पानी के साथ पी लो ये भी दस्त ठीक कर देता है |
पेट अगर आपका साफ़ नही रहता कब्जियत रहती है तो इसकी सबसे अछि दावा है अजवाईन | इसको गुड में मिलाके चबाके खाओ और पीछे से गरम पानी पी लो तो पेट तुरंत साफ़ होता है , रात को खा के सो जाओ सुबह उठते ही पेट साफ होगा |
और एक अछि दावा है पेट साफ करने की वो है त्रिफला चूर्ण , रात को सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण ले लो पानी के साथ पेट साफ हो जायेगा |
पेट जुडी दो तिन ख़राब बिमारिय है जैसे बवासीर, पाईल्स, हेमोरोइड्स, फिसचुला, फिसर .. ये सब बिमारिओ में अछि दावा है मुली का रस | एक कप मुली का रस पियो खाना खाने के बाद दोपहर को या सबेरे पर शाम को मत पीना तो हर तरेह का बवासीर ठीक हो जाता है , भगंदर ठीक होता है फिसचुला, फिसर ठीक होता है .. अनार का रस पियो तो भी ठीक हो जाता है |
अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:
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वन्देमातरम्
भारत माता की जय
Thursday 9 May 2013
क्या आप को पता है एसे फेक इश्यूस बनाने से अमेरिका के शेयर मार्केट मे कितनी तेज़ी आती है...!!!!! ठीक वैसे ही हुआ जैसे बिल्डिंग और मलला कांड भी अमेरिका ने ही खुद करवाए थे!!
1. सबी को पता है अमेरिका के पास अपनी एकॉनमी चलाने के लिए सिर्फ़ 4 फील्ड्स हैं (कॉसमेटिक्स, ऑटोमोबाइल्स, हथियार, अब थोड़ा एलेक्ट्रॉनिक्स मोबाइल एट्सेटरा.)
2. अमेरिका के उपर ट्रिलियन डॉलर का कर्ज़ है. और अमेरिका दिखाता नही लेकिन एकॉनमिस्ट्स से पूछो .. अमेरिका की एकॉनमी लगातार डूब रही है.
3. एसे मे इस तरह के फेक इश्यूस वर्ल्ड शेयर मार्केट मे उसकी एकॉनमी मे 2 से 3 महीनो के लिए अच्छा ख़ासा प्रॉफिट दे देता है.. इसी लिए अमेरिका खबर मे बने रहने के लिए.. दूसरे देशों के इश्यूस मे भी हमेशा टाँग घुसता रहता है.
4. और इस तरह की ख़बरे क्रियेट करने से बाकी देश अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका से ही हथियार खरीदते हैं.. और फिर से अमेरिका की एकॉनमी को डबल फ़ायदा हो जाता है.
1. सबी को पता है अमेरिका के पास अपनी एकॉनमी चलाने के लिए सिर्फ़ 4 फील्ड्स हैं (कॉसमेटिक्स, ऑटोमोबाइल्स, हथियार, अब थोड़ा एलेक्ट्रॉनिक्स मोबाइल एट्सेटरा.)
2. अमेरिका के उपर ट्रिलियन डॉलर का कर्ज़ है. और अमेरिका दिखाता नही लेकिन एकॉनमिस्ट्स से पूछो .. अमेरिका की एकॉनमी लगातार डूब रही है.
3. एसे मे इस तरह के फेक इश्यूस वर्ल्ड शेयर मार्केट मे उसकी एकॉनमी मे 2 से 3 महीनो के लिए अच्छा ख़ासा प्रॉफिट दे देता है.. इसी लिए अमेरिका खबर मे बने रहने के लिए.. दूसरे देशों के इश्यूस मे भी हमेशा टाँग घुसता रहता है.
4. और इस तरह की ख़बरे क्रियेट करने से बाकी देश अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका से ही हथियार खरीदते हैं.. और फिर से अमेरिका की एकॉनमी को डबल फ़ायदा हो जाता है.
Tuesday 7 May 2013
संपर्क करे ---आर्य जितेंद्र 09752089820 विदेशी कंपनीया अपने पाश्चात्य विज्ञान के बड़े ही हास्यास्पद और खतरनाक उदाहरण प्रस्तुत करती है उनमे से ही एक "जेनेटिक ड़ीफ़ाई फूड " इस तकनीकी मे बीज के अंदर किसी भी जीव जन्तु का जीन दाल कर उसे बनाया जाएगा जैसे की
उदाहरण के लिए लोकी के अंदर महिला का जीन
और खतरनाक बात तो यह है की ऐसा अनाज भारत मे कई नामी गिरामी विदेशी कंपनिया अपने उत्पादो मे उपयोग कर रही है और भारत वासी अंजाने मे अपनी मौत का स्वाद चख रहे है इन उत्पादो के रूप मे
और खतरनाक बात तो यह है की ऐसा अनाज भारत मे कई नामी गिरामी विदेशी कंपनिया अपने उत्पादो मे उपयोग कर रही है और भारत वासी अंजाने मे अपनी मौत का स्वाद चख रहे है इन उत्पादो के रूप मे
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